Thursday, October 14, 2010

महापुरुषो का अनुसरण कर बड़ा बनिए

बड़ा बनने के लिए हमें बड़े लोगो की भांति अच्छे गुणों का स्वयं मै विकास करना चाहिए, बेंजामिन फ्रेंकलिन का यह कथन हमारी प्रेरणा का अग्रदूत बन जाना चाहिए कि "अभी तक कोई भी व्यक्ति वास्तव मै महान नहीं हुआ, जो साथ ही साथ गुणवान न रहा हो," स्वेट मार्टेन ने भी महान बनने के लिए महान व्यक्तियों के गुणों को ग्रहण करने कि सलाह दी है, जिसके अनुसार, "मनुष्य उतना ही महान होगा जितना वह अपनी आत्मा मै सत्य, त्याग, क्षमा, दया, प्रेम, और शक्ति का विकास करेगा।"
महापुरुष जैसा आचरण करते है, दुसरे लोग उसी का अनुसरण करने लगते है, महाभारत ने धर्म का निरूपण करते हुए लोक व्यवहार कि दृष्टी से यह तथ्य प्रस्तुत किया था कि धर्म कि गति अत्यंत सूक्ष्म है, महापुरुष जिस मार्ग से गए है, वही श्रेयस्कर मार्ग है और हमें उसी का अनुसरण करना चाहिए - 'महाजनों एन गत: सा पन्था:'
प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि महाजन अथवा महापुरुष किसको माना जाए? प्रत्येक मनुष्य का अपना विशिष्ट वयक्तित्व होता है, वह अपनी चेतना-विकास द्वारा ही अपने आदर्शो का निर्णय करता है इस दृष्टी से व्यक्ति विशेष ही महापुरुष होगा, तब क्या महापुरुष का मापदंड व्यक्ति सापेक्ष है?
महाजन या महापुरुष का एक सामान्य लक्षण है- कथनी और करनी के मध्य सामंजस्य-
कहते है महतजन पहले करके ही दिखलाते है
कार्यसिद्धि करने से पहले बातें नहीं बनते है
त्याग, तपस्या, सदाचार,आदि का उपदेश तो सभी देते रहते है, परन्तु अपने कथन के अनुसार आचरण बिरले जन ही करते है। सद्गुणों को धारण करने वाले महानुभाव ही समाज कि दृष्टी मै महापुरुष बनते है। क्योंकि वे महापुरुषों कि भांति आचरण करते है, कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक मान्यतानुसार श्रेष्ठ गुणों को धारण करने वाले व्यक्ति ही महापुरुष माने जाते है, अतएव महापुरुष के लक्षण सामान्यतः वस्तुगत होते है और महापुरुष सहज ही समाज कि श्रद्धा के पात्र बन जाते है।
महापुरुष का वयक्तित्व वस्तुतः सागर सदृश्य विशाल होता है। उसमे प्रत्येक जलधारा के लिए समान स्थान होता है, संस्कृत के कवि माघ ने कहा है कि 'महात्मा लोग शरणागत शत्रुओ पर भी अनुग्रह करते है, बड़ी नदियाँ अपनी छोटी सपली (छोटी-मोटी) पहाड़ी नदियों को भी समुद्र (अपने पति ) तक स्वयं मिलाती है।
महान पुरुष का अनुसरण करने वाला व्यक्ति अपनी महानता के प्रति जागरूक हो जाता है और वह असंभव प्रायः कार्य करने का साहस करते हुए भी संकोच नहीं करता है, श्रीराम के निरंतर संपर्क मे रहने वाले लक्ष्मण ब्रम्हांड को गेंद कि भांति उठा लेने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते थे।
जैसे तारे टूट भस्म हो उज्जवल जग कर जाते
वैसे महापुरुष खुद तपकर राष्ट्र सजग कर पाते
वस्तुतः महान वह होता है जो त्याग करता है, जितना बड़ा त्यागी होगा, व्यक्ति उतना ही महान बन जायेगा, "महान त्याग द्वारा ही महान कार्य संभव है," (स्वामी विवेकानंद)
कविन्द्र रबिन्द्रनाथ ठाकुर ने एक सन्दर्भ मे लिखा है "कर्म मे रहकर ही हम कर्म से महान हो सकते है, परित्याग करके या पलायन करके किसी भी प्रकार यह संभव नहीं है।"
महापुरुष के अनुसरण का अर्थ उच्चादर्श का अनुसरण है। "इस संसार मे प्रत्येक वस्तु वट-बीज के समान है, जो यदपि देखने मे तो सरसों के दाने के समान लघु प्रतीत होता है, तथापि वह अपने भीतर विशाल वट वृक्ष को छिपाए रहता है," सचमुच महान वही है जो बीज कि संभावनाओ को परख कर प्रत्येक कार्य को महान बनाने मे सफलता
प्राप्त करके दिखा सके।






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