Friday, October 15, 2010

भारतीय संस्कृति

संस्कृति सर्वथा अविरोधी वास्तु है, यह सत्य की खोज मई शील की ध्वजा लेकर चलती है, विरोध और विरोधी शब्द उसके लिए अपरिचित है,भारतीय संस्कृति, पाश्चात्य संस्कृति आदि कहकर हम संस्कृति को खंडित करने का निरर्थक प्रयास करते है, सुसंस्कृत व्यक्तियों का एक ही वर्ग होता है और वो है मानव समुदाय। अत: उदात्तीकरण का नाम संस्कृति है, संस्कृति शब्द के पहले भारतीय या पाश्चात्य आदि विशेषणों को जोड़ने का यही अर्थ हो सकता है कि उक्त भू-खंड के साधको ने अभी तक सत्य के इतने ही अंश का साक्षात्कार किया है।
रहन-सहन, परिधान, व्यवहार आदि मई नवीनता अथवा किसी प्रकार कि सपेक्स विरूपता देखकर हम यह कहकर नाक भोंह सिकुड़ने लगते है कि यह तो पाश्चात्य संस्कृति कि का प्रभाव है, यह हमारी भारतीय संस्कृति पर कुठराघात है, हमारी संस्कृति ऐसी नहीं है आदि, इस प्रकार के कथन करते हुए हम कदाचित ही यह विचार करते हो कि संस्कृति कि अवधारणा क्या है और उसमे भारतीय शब्द जोड़ देने से हमारा अभिप्राय क्या रहता है।
संस्कृति मनुष्य कि विविध साधनाओ कि अंतिम परिणिति है, डॉ हजारी प्रसाद दिवेदी के शब्दों मे- 'मनुष्य कि श्रेष्ठ साधनाए ही संस्कृति है'। संस्कृति उस अवधारणा को कहते है, जिसके आधार पर कोई समुदाय विशेष जीवन की समस्याओ पर दृष्टी-निपेक्ष करता है। संस्कृति किसी समुदाय,जाति, देश अथवा राष्ट्र का प्राण या आत्मा होती है, संस्कृति द्वारा जाति , समुदाय , देश अथवा राष्ट्र विशेष के उन समस्त संस्कारो का बोध होता है, जिनके सहारे वह अपने आदर्शो , जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है।
भारतीय संस्कृति मे लोक-सिद्ध और शास्त्रैक समधीगम्य दोनों का समन्वय है, वह जीवन को पूर्णरूप मे देखने का प्रयत्न करती है तथा विश्व-ब्रम्हांड उसके निकट एक इकाई है, भारतीय आर्ष ऋषि ने अपने को पृथ्वी पुत्र कहा है और मन है की पृथ्वी मेरी माता है। भारतीय मनीषा के निकट पूर्व और पश्चिम, अपना और पराया जैसी वस्तु कभी नहीं रही? उसने- वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा द्वारा अनुप्राणित होकर 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' सर्वे सन्तु निरामय' की कामना कि। "भारतीय संस्कृति मे पृथकत्व का लेश-मात्र भी नहीं है, यह आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर आधारित है."(स्वामी विवेकानंद)
भारतीय संस्कृति ने लोहे की विजय की बात कभी नहीं की। उसके सेवको ने सदैव प्रेम और बंधुत्व की बात की है।
भारतीय संस्कृति अभय की संस्कृति है, इसी से वह महान और अमर है।






No comments:

Post a Comment